सिद्धार्थ कांकरिया @ थांदला
थांदला। जिले की भाजपा के लिए अयोध्या कही जाने वाली कल्याणपुरा और जिले के चाणक्य कहे जाने वाले प्रवीण सुराना को भाजपा आलाकमान ने विधानसभा चुनाव के कुछ माह पूर्व जिलाध्यक्ष बनाकर जो फैसला लिया है वह कही ना कही भाजपा के प्रतिद्वंदी दल कांग्रेस के लिए चिंता का विषय बन गया है। सुराना की स्वच्छ और स्पष्ट छवि पूरे जिले में एक अलग ही पहचान स्थापित करती है।
लेकिन सुराना के जिला अध्यक्ष बनते ही, अब यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या ‘सुराना’ के ‘सुर’ से भाजपा के तीनों विधानसभा सीटों पर उठ रहे बेकाबू बगावत पर लगाम लगाई जा सकती है।
वैसे तो सुराना जिले की राजनीति के आधारस्तम्भ माने जाने वाले दिलीपसिंह भूरिया के चेले होने के साथ साथ राजनीति के पुराने खिलाड़ी भी रहे हैं। लेकिन इन दिनों चल रही भाजपा की राजनीति को लेकर वह आला कमान के जाताए इस भरोसे पर कितने खरे उतरेंगे यह समय ही बताएगा।
गुटबाजी से परे माने जाते हैं सुराना
जिले में गुटबाजी के लिए भाजपा पूरे प्रदेश में चर्चित हो चुकी है। भाजपा की गुटबाजी अब सड़कों पर दिखाई दे रही है। ऐसे में विधानसभा चुनाव के पूर्व भाजपा के विभिन्न पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं को एक अंब्रेला (छाते) के नीचे लाना शीर्ष स्तर के नेताओं के लिए तो चुनौती है ही। लेकिन इस गुटबाजी से निपटने के लिए भाजपा शीर्ष नेताओं ने प्रवीण सुराना को जिला अध्यक्ष बनाकर काफी हद तक इस मुसीबत से छुटकारा पाने की कोशिश की है। क्योंकि सुराना का नाम किसी भी गुटबाजी में शामिल नहीं है। वही सुराना ने अपनी कार्यशैली से अब तक बने भाजपा के सभी जिलाध्यक्षों को सहयोग किया है। वहीं भाजपा जिला अध्यक्ष की सूची में प्रवीण सुराना का नाम हर बार मुख्य रूप से लिस्ट में शामिल होता था। और अंततः लिस्ट से कट जाता था। बावजूद इसके सुराना ने कभी अपना धैर्य नहीं खोया और हर समय अनुशासन के लिए पहचाने जाने वाली भाजपा पार्टी का कार्य जमीनी स्तर तक किया। आगामी दिनों में विधानसभा चुनाव होना है अब सवाल यह उठता है कि क्या वह सब भाजपा पदाधिकारी और कार्यकर्ता जिन्हें कभी सुराना ने सहयोग किया था। अब वह लोग सुराना के नेतृत्व में कार्य कर भाजपा के सीर पर ताज पहनने में कामयाब होंगे।
राजीनीतिक कॅरियर
वहीं अगर प्रवीण सुराना की राजनीति करियर की बात करें तो सुराना ने ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत से लेकर उन सभी पदों पर बखूबी अपनी जिम्मेदारी निभाई है। जो भाजपा संगठन ने उन्हें सौंपी है। इनमें मुख्य रूप से प्रवीण सुराणा 3 वर्षों तक व्यापारी प्रकोष्ठ के संयोजक, आजीवन सहयोग निधि के दो बार जिला प्रभारी, लगभग 5 वर्षों तक जिला महामंत्री, वहीं कल्याणपुरा ग्राम पंचायत के 15 वर्षों तक सरपंच, जनपद पंचायत झाबुआ के 10 वर्षों तक उपाध्यक्ष और 15 वर्षों तक सदस्य रहे हैं।
सुराना के राजनीतिक करियर की इन विविधताओं, स्पष्ट और स्वच्छ छवि गुटबाजी से परे, विभिन्न राजनीतिक समीकरणों से ‘इतर’ सुराना कांग्रेस के उसी महल से भाजपा के किले में आए है। जो इस समय भाजपा के लिए चुनोती बनी हुआ है। जाहिर है कांग्रेस में रहते हुए सुराना ने कांग्रेस की कूटनीति, चुनाव लड़ने के तरीके को बहुत करीब से देखा होगा। ऐसे में भाजपा द्वारा सुराना को जिला अध्यक्ष बनाने से उसे दोहरा फायदा होने की उम्मीद है।
ऐसे में माना यह जा रहा है कि भाजपा के प्रदेश संगठन ने सुराना को जिलाध्यक्ष बनाकर एक तीर से दो शिकार किए है।