सिद्धार्थ कांकरिया @ थांदला
थांदला। भारत के 77वे स्वतंत्रता दिवस पर पूरा देश जहां आजादी का जश्न मना रहा था। वही थांदला जनपद पंचायत में जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों की लंबे समय से चली आ रही खींचतान खुलकर सामने आ गई। राष्ट्रीय कार्यक्रम में जनपद पंचायत के एक भी जनप्रतिनिधियों ने शामिल नही होकर अपनी नाराजगी तो जाहिर कर दी। वही कार्यक्रम में प्रशासनिक अधिकारियों ने झंडा वंदन कर अपनी जिम्मेदारी भी पूरी कर ली। लेकिन क्या जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों की नाराजगी महत्वपूर्ण और संवेदनशील राष्ट्रीय कार्यक्रम से रहना चाहिए या व्यक्ति विशेष से। जनप्रतिनिधियों को यह सोचना चाहिए कि प्रतिनिधि के तौर पर संविधान की शपथ लेने के बाद वह स्वयं हजारों मतदाताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे है। कई नागरिक अपने चुने हुए जनप्रतिनिधियों को राष्ट्रीय कार्यक्रम में शामिल होता देख स्वयं को गौरवान्वित महसुस करते है। बावजूद इसके जनप्रतिनिधियों की यह लापरवाही एक बड़ा प्रश्न खड़ा कर रही है।
वही दूसरा सवाल यह भी है कि ऐसी कौन सी वजह रही कि प्रशासन के लिए जनप्रतिनिधियों की नाराजगी इस हद तक पहुंच गई। कि उन्होंने एक राष्ट्रीय कार्यक्रम में अपनी सहभागिता करना भी उचित नहीं समझा। प्रशासन को मतदाताओं द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधियों की गरिमा का भी ध्यान रखना चाहिए।
खेर बात चाहे जो भी हो दोनों पक्षों को राष्ट्रीयता से जुड़े इस मुद्दे पर संवेदनशीलता दिखाना थी। जो पूरे मामले में विरक्त रही।
क्या महत्व है जनपद पंचायत का
क्षेत्र के विकास से संबंधित विविध योजनाओं के निर्माण एवं क्रियान्वयन में जनपद पंचायत की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। विकास खण्ड स्तर पर ग्रामीण जीवन के विभिन्न क्षेत्रों, जैसे कृषि, सहकारिता, पशुपालन, स्वास्थ्य एवं सफाई आदि मे विकास योजनाओं के प्रभावकारी संचालन के लिए मुख्य कार्यपालन अधिकारी और संबंधित अधिकारी, कर्मचारी, सरपंच, पंचों, जनपद सदस्यों, अध्यक्ष, उपाध्यक्ष आदि से तालमेल मिलाकर विकास कार्य को अंजाम तक पहुंचाते हैं।
कुल मिलाकर जनपद पंचायत ग्रामीण क्षेत्रों की विकास के लिए रीड की हड्डी मानी जाती है। वही जनपद पंचायत में जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों की खींचातानी अगर अपनी पराकाष्ठा तक पहुंच जाएगी। तो क्षेत्र का विकास किस स्तर से चल रहा होगा इसका अनुमान सहजता से लगाया जा सकता है।
चुनावी वर्ष में यह खींचतान कहीं सत्ता दल को भारी न पड़ जाए
कुछ ही महीनो में विधानसभा चुनाव होंगे। इस वर्ष का राष्ट्रीय पर्व (15 अगस्त 2023) तो आपसी खींचतान में निकल गया है। लेकिन वर्ष 2024 का राष्ट्रीय पर्व (26 जनवरी) तक संभव है कि विधानसभा चुनाव पूर्ण हो जाए। यदि प्रशासनिक अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के बीच चल रही आपसी खींचातान का जल्द ही हल नहीं निकाला गया तो कहीं सत्तारूढ़ दल को अंचल में इसकी कीमत नहीं चुकाना पड़ जाए।
क्योकि कई जनकल्याणकारी योजनाओ को जनपद के प्रशासनिक अधिकारी और जनप्रतिनिधि आपसी सामंजस्य से मिलकर धरातल पर पहुंचाते हैं। अमूमन देखने में आता है कि चुनावी वर्ष में शासकीय योजना को धरातल तक पहुंचने में तेजी आ जाती है। ताकि सत्तारुढ़ दल को इसका पूरा लाभ मिल सके। लेकिन थांदला में जनपद पंचायत का नजारा कुछ विपरीत ही नजर आ रहा है।
मामला चाहे जो भी हो प्रशासनिक अधिकारी, कर्मचारी, जनप्रतिनिधियों और आम नागरिकों को संविधान के प्रति अपनी आस्था कभी कम नहीं होने देनी चाहिए।